प्राकृतिक सौन्दर्य साधन :और लाभ

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 नमस्कार पिछले पोस्ट में हमने केमिकल मिश्रित हानिकारक ब्यूटी प्रोडक्ट के बारे में पढ़ा जिनमे मौजूद हानिकारक रसायन तत्काल सुंदरता प्रदान तो करते है परन्तु इनका दूरगामी परिणाम काफी भयाभय होता है जो कई बीमारियों के साथ गंभीर चर्म रोग तथा कैंसर तक के सम्भावना पैदा कर सकते है। तो ऐसे में कुछ प्राकृतिक बस्तुओं से भी हम नेचुरल रूप से चेहरे तथा बालों, शरीर की त्वचा आदि का उचित और सम्पूर्ण देखभाल कर सकते है तो आइये आज जानते है हमारे आसपास मौजूद आसानी से पाए जाने वाले प्राकृतिक वस्तुएँ जों हमें बिना किसी साइड इफेक्ट और हानि पहुचायें हमें खूबसूरत बनाने में मदद करती है चेहरे पे कालापन दूर करने के उपाय? गर्मीयों में धुप की वजह से या फिर अत्यधिक बाहर काम करने के कारण अगर त्वचा में कलापन आ गया हो तो निम्नलिखित घरेलु उपायों के द्वारा अपने चेहरे पे निखार ला सकतें है। 1* शहद और नीबू का रस बराबर मात्रा लेकर चेहरे पर लगा ले और थोड़ी देर सूखने के बाद इसे धो ले इस प्रक्रिया को नियमित करने पर प्राकृतिक रूप से चेहरे का कालापन दूर होता है 2*मसूर दाल और दूध को पेस्ट बनाकर चेहरे पे लगाना और थोड़ी देर सूखने पर धो ले

संतुलित आहार:शारीरिक ऊर्जा का श्रोत

 संतुलित आहार कैसा होना चाहिये? (Santulit aahar kaisa hona chahiye?)

नमस्कार मित्रों संतुलित भोजन के बारे आप सभी को थोड़ा बहुत पता ही होगा, भोजन में निर्दीष्ट मात्रा में विटामिन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट्स, खनिज तत्वों का मौजूद होना भोजन को संतुलित आहार बना ता है। यह एक सामान्य मान्यता है, और इसके साथ ही उम्र, शारीरिक  अबस्था, परिश्रम, के आधार पर कैलोरी की मात्रा  को निर्धारित कर दिया जाता है। इस तरह, एक विशेष कैलोरी की मात्रा और सभी प्रकार के पोषण तत्वों,फैट्स,विटामिनो और खनिज लवणों की मात्रा सम्यक रूप से भोजन में उपस्थिति को ही आमतौर पे संतुलित आहार का नाम दे दिया जाता है। परन्तु इस  तरह भोजन संतुलित नहीं हो जाता है।संतुलित भोजन की परिभाषा, समयखण्ड, प्राकृतिक वातावरण, जलवायु, तथा भोजन ग्रहण करने वाले के स्वास्थ्य स्तिथि, उम्र परिश्रम  के आधार में परिबर्तित होता रहता है
उदाहरण के लिए,, नवजात शिशु का संतुलित आहार माता का स्तनपान होता है तथा रोग, शारीरिक प्रकृति, वातावरणीय प्रभाव के कारण भी संतुलित आहार की परीभाषा में बदलाव आ सकते है भोजन में कैलोरी की मात्र का 70% कार्बोहाइड्रेट,15%प्रोटीन,तथा 15%मात्रा वसा की होनी चाहिये


भारतीय पारम्परिक भोजन : एक संतुलित आहार




भारतीय पारम्परिक भोजन हमारे पूर्वजों द्वारा दिया गया एक आशीर्वाद है। मौसमी फल, मसाले, मोटे अनाज, साग, तथा रसोई में मौजूद ताजी हरी सब्जियाँ आदि का उपयोग हमारे दैनिक जीवन में किसी दिव्य औषधियों से कम नहीं है। आपको भारत में क्षेत्रों के अनुसार भोजन की विभिन्नताये देखने को मिलती है, जहाँ उत्तर भारत की भोजन शैली, दक्षिण भारत के भोजन शैली से भिन्न होती है प्राकृतिक वातावरण के अनुसार दोनों शैलियां ही बैज्ञानिक रूप से सही है आयुर्वेद के अनुसार जिस चीज में सूर्य की धुप और हवा का स्पर्श नहीं हो उसे नहीं खाना चाहिये क्योंकि यह विष सामान है परम्परागत भारतीय भोजन में जंक फ़ूड, तथा डिब्बा बंद खाद्य पदार्थो की मान्यता नहीं है भारतीय पारम्परिक भोजन में चावल, दाल, गेहूं मोटे अनाज,बाजरा, रागी, मक्का, दूध,घी, मौसमी, फल तथा सब्जियाँ सूखे मेवे आदि का बृहत उपयोग होता रहा है जिसमे मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्त्व मौजूद है, और भारतीय मसालों का पारम्परिक भोजन में एक विशिष्ट स्थान है भारतीय मसाले प्राकृतिक रूप से औषधिय गुणों से परिपूर्ण होते है जों शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाये रखने में सहायक  होते है।

विरुद्ध आहार :संतुलित भोजन में विष समान



हमारे भोजन में दो विरूद्ध स्वभाब वाले खाद्य पदार्थ का समावेश होना भी भोजन को असंतुलित बनाता है दो विपरीत स्वभाव, और विपरीत ताशिर  के खाद्य वस्तुओं को साथ में खाने पर खाद्य  का शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और कभी कभी यह स्थिति भी जानलेवा साबित हो जाती है। आइये कुछ प्रमुख खाद्य पदार्थो के विपरीत स्वभाब के बारे में जानते है,
दूध और दही
प्याज़ और दूध
दही और नमक, इन चीज़ो को साथ में कभी नहीं खाना चाहिये दूध जन्य खाद्य वस्तुओं के साथ प्याज़ का उपयोग नही करना चाहिये दही के साथ प्याज़ का उपयोग कर सकते है और दही को मीठी चीज़ो के साथ उपयोग करने से इसके गुणों में बृद्धि होती है
शहद और घी.. दोनों अमृत सामान है दोनों में शारीरिक पुष्टि के लिए उत्तम अवयव मौजूद होने के बाबजूद इन दोनों को साथ में खाने पर इसका प्रभाव विष सामान होता है।
उड़द दाल (काली दाल, मास की dal) को कभी भी दही के साथ नहीं खाना चाहिए, और दूसरे प्रकार के दाल खाये जा सकते है, एक मात्र उदड ऐसा दाल है जो दही का विरुद्ध आहार होता है
खट्टे फलों के साथ दूध वर्जित है
कटहल की सब्जि के साथ दूध वर्जित होता होता है 

आयुर्वेद के अनुसार विरुद्ध आहार कौन से  है?



आयुर्वेद के अनुसार 18प्रकार की स्थिति विरूद्ध आहार की श्रेणी में आते है
1•देश विरूद्ध 2•काल विरुद्ध 3•अग्नि विरुद्ध 4•मात्रा विरुद्ध 5•सातम्य विरुद्ध 6•दोष विरुद्ध 7•संस्कार विरुद्ध 8•वीर्य विरुद्ध 9•कोष्ठ विरुद्ध 10•अवस्था विरुद्ध •11क्रम विरुद्ध 12•परिहार विरूद्ध 13•उपचार विरुद्ध 14•पाक विरुद्ध 15•संयोग विरुद्ध 16•हद विरुद्ध 17•संपाद विरुद्ध 18विधि विरुद्ध
*देश विरुद्ध-देश विरुद्ध अर्थात, हमारे रहने के स्थान के विरुद्ध भोजन, जैसे शीत जलवायु वाले इलाके में ठंडी चीज़ो का उपयोग तथा गर्म प्रदेशो में  तीखी उष्ण प्रकृति आहार, विरुद्ध आहार है
*काल विरुद्ध-समय के विपरीत किया गया भोजन, भी बिरुद्ध आहार होता है
*अग्नि विरूद्ध-  शरीर  में पाचन शक्ति की अवस्था को ही आयुर्वेद में अग्नि कहते है पाचन शक्ति का ध्यान रख के ही भोजन करना चाहिये। अन्यथा अग्नि विरुद्ध दोष जनित रोग होते है।
*मात्रा विरुद्ध - कुछ चीज़े आपस में ले सकते है पर इनकी मात्रा का विचार करना चाहिए, जैसे सामान मात्रा में घी और शहद मात्रा विरूद्ध दोष उत्पन्न करता है
*सातम्य दोष -आयुर्वेद के अनुसार, वात, पित्त, और कफ मनुष्य के शरीर में तीन प्रकृति होती है अतः प्रकृति  के अनुरूप ही भोजन करना चाहिये, जैसे वात प्रकृति के लोगों को वात को बढ़ाने वाले भोजन नहीं करना चाहिए इस तरह अपनी शारीरिक प्रकृति के विरुद्ध किया गया भोजन सातम्य दोषी कहलाता है
*दोष विरूद्ध -अपनी शारीरिक प्रकृति के प्रतिकूल भोजन दोष विरूद्ध होता है शरीर के दोषों को विचार कर के ही भोजन करना चाहिये
*संस्कार विरूद्ध - भोजन बनाने की प्रक्रिया को संस्कार कहते है और जब यह संस्कार हमारे अनुकूल नहीं होते तो है तो इसे संस्कार विरुद्ध कहा जाता है जैसे शहद को गर्म करना एक संस्कार विरूद्ध  होता है
*वीर्य विरूद्ध - भोज्य पदार्थ हो या औषधि उन सबकी अपनी अपनी ताशीर होती है इनकी ताशीर या तो गर्म होती है या फिर ठंडी होती है इस तरह ठंडी और गर्म ताशिर के खानपान साथ में खाना वीर्य विरुद्ध होता है उदाहरण के लिए मछली तथा दूध का सेवन वीर्य विरूद्ध है क्योंकि मछली की ताशीर उष्ण तथा दूध की ताशीर शीतल होती है
*कोष्ठ विरुद्ध -आयुर्वेद में प्रकृति के अनुसार, क्रूर कोष्ठ, माध्यम कोष्ठ, तथा मृदु कोष्ठ का वर्णन  मिलता है जिसके अनुसार पाचन क्षमता, मल त्याग की आदतों को ध्यान रख के भोजन करना चाहिए यदि इन बातों को ध्यान नहीं रखा जाता है तो ये कोष्ठ विरूद्ध है उदाहरण के लिए जिसका मृदु कोष्ठ होता है उसे भारी प्रकृति का भोजन नहीं करना चाहिए उसे हलके तथा सुपाच्य भोजन करना चाहिये।
*अवस्था विरुद्ध - स्वयं की अवस्था के अनुसार ही भोजन करना चाहिए उदाहरण के लिए कठोर परिश्रम तथा व्यायाम करने वालों को वात प्रकृति के भोजन नहीं करना चाहिये। और कफ प्रकृति के व्यक्ति को कफ बढ़ाने वाले भोजन करना आदि अवस्था विरुद्ध होता है।
*क्रम विरुद्ध -आयुर्वेद में दिनचर्या का वर्णन है जिसमे सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक बिना नित्यक्रम के बिना मलमूत्र त्याग के, बिना भूख के भोजन करना क्रम विरुद्ध होता है, आयुर्वेद के अनुसार भोजन में छः प्रकार के रस होते है मीठा,  खट्टा, खारा,तीखा, कड़वा,  कसैला, इन रसों को भी क्रमशः उपयोग करना चाहिए आयुर्वेद के अनुसार मीठा रस भोजन के सुरुवात में होना चाहिये, और जो कसैला रस है वो भोजन के अंत में होना चाहिये। इनका क्रम में उपयोग नहीं होना  क्रम विरूद्ध होता है
*परिहार विरूद्ध - गर्म पेय पिने के बाद ऊपर से ठंडा जल पिना परिहार विरुद्ध होता है, घी के सेवन करने के बाद ठंडा जल पिना भी परिहार विरुद्ध है
*उपचार विरुद्ध -शरीर की बीमारी या रोग का विचार नहीं करते हुए भोजन करना उपचार विरूद्ध है।
पाक विरूद्ध -भोजन बनाते समय उसे अच्छी तरह से पकाना आवश्यक है अन्यथा पाक विरूद्ध होता है जैसे की, भोजन का अधिक पकना या फिर कच्चा रह जाना या भोजन में उपयोग तेल घी आदि का जल जाना आदि
संयोग विरुद्ध - संयोग विरूद्ध आहार आजकल आम बात हो गयी है आजकल हम आधुनिकता और जिह्वा के स्वाद के लिए कई विपरीत प्रकृति के खाद्य को साथ में मिलाकर खाते है जो संयोग विरूद्ध है उदाहरण के लिए अम्लीय फलो को दुध के साथ खाना,, जैसे मिल्क शेक, फ्रूट सलाद आदि। केला और दूध भी विरुद्ध आहार है मांसाहार के साथ दूध, दूध और दही साथ में लेना हरे पत्तेदार सब्जिओं के साथ दूध भी संयोग विरुद्ध है
* ह्रदय विरुद्ध -इच्छा के विरुद्ध भोजन, डर, चिंता आदि की स्थिति में भोजन ह्रदय विरूद्ध होता है
*संपद विरूद्ध - वासी आहार,सडे गले फल या फिर कच्चे फल आदि
का उपयोग करना सम्पद विरूद्ध होता है
*विधि विरुद्ध - आयुर्वेद में आहार विधि विधान के बारे में विस्तृत विवरण  मिलता है, जिसमे भोजन कब पकाना चाहिये, भोजन कब करना चाहिए, मन की किस स्थिति में भोजन करना चाहिए और ख़ाना ख़ाते वक्त किन किन चीज़ो का ध्यान रखना चाहिये  जैसे बोलते हुए खाना, खड़े होकर खाना टेलीवीज़न देखते हुए खाना आदि, आहार विधि विरुद्ध होता है
 महर्षि चरक द्वारा रचित चरक सहिंता में अठारह  प्रकार के विरुद्ध आहार वर्णन मिलता है 

इस तरह संतुलित आहार में विरुद्ध आहार का भी बिचार करना चाहिये 


क्या फ्रीज़ में खाने की चीज़े रखना सुरक्षित होता है? (Kya khane ki chize freeze me rakhna surakshit hai?)

आजकल प्राय घरों में फ्रीज का उपयोग आम बात है, क्या हमें पता है फ्रीज में वाकई भोजन कई दिनों तक सुरक्षित रहता है या फिर उसमे कई तरह के बदलाव नज़र आते है.फ्रीज़ के अंदर तापमान को कम करने के लिए गैस का इस्तेमाल किया जाता,है जिसका नाम (chlroflurocarbon )क्लोरोफ़्लूरोकार्बन है। जो क्लोरिन, फ्लोरिन और कार्बन का संयोग होता है। ज्यादा समय तक खाने पिने की वस्तुओं का फ्रीज़ में स्टोर करना हानिकारक होता है फ्रीज़ में मौजूद गैस का खाने की चीज़ो  के सम्पर्क में आने पर उनके नुट्रिशन के रासायनिक समीकरण  में प्रभाव डालता उसे विषैला बनता है कार्बन फ्लोरो कार्बन बेहद ही शक्तिशाली और घातक गैस है जों ओजोन की परत तक प्रभावित कर सकती है, अतः कटी हुई सब्जियाँ, कटे हुए फल, तथा गुंथे हुए आटे में (cfc) गैस का संक्रमण जल्दी होता है फ्रीज मे, सूर्य का प्रकाश और ताजी हवा का कोई संपर्क नहीं होता है इस  कारण भी फ्रीज़ में स्टोर किये सामग्री में विषैले तत्त्व सक्रिय हो जाते है।
(Cross contamination)पार संदुषण होना भी फ्रीज में रखें भोजन में बैक्टीरिया संक्रमण का कारण बनता है, खाने के लिए तैयार सामग्री के साथ में( RTE) कोई दूसरा पदार्थ जैसे कच्चा मीट आदि,साथ में या फिर संपर्क में आने से एलेर्जीक खाद्य का नोन एलेर्जीक खाद्य के साथ में रखना (cross contamination)पार संदुषण का कारण बनता है।

एलर्जीक फल तथा सब्जियाँ (एलर्जीक फ्रूट्स एंड वेजीटेबल इन हिंदी )



आमतौर पर एलर्जी एक सामान्य समस्या है कभी कभी इसका स्थायी रूप ले लेना हमारे लिए परेशानी का सबक बन जाता है जब हमारे शरीर का प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर  के विरुद्ध ही कार्य करने लगता है तब इस अवस्था को एलर्जी कहते है। यूँ तो एलेर्जी के अनेक कारण होते है परन्तु खाद्य पदार्थ, भी इनका प्रमुख कारण होता है। आइये आज हम कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों के बारे में जानेंगे जो एलेर्जीक रूप से काफी संवेदनशील माने जाते है

डेयरी उत्पाद

डेयरी उत्पाद जैसे दूध, दही, मक्खन, पनीर आदि काफी स्वास्थ्य वर्धक माने जाते है लेकिन जिन्हे एलर्जी की समस्या है उन्हें डेयरी  जन्य पदार्थों से परेशानी हो सकती है, क्योंकि इनमे संक्रमण को जल्द फैलाने वाले तत्त्व मौजूद होते है,विशेषतः पनीर, दही आदि में पाया जाने वाला एलेर्जीक तत्त्व हिस्टामाइन पाया जाता है।

फल

कुछ फलो में भी एलेर्जीक तत्त्व सक्रिय होते है, जैसे आड़ू, सेव, कीवी, अंगूर, तरबूज आदि पोलेन नामक एलेर्जी का कारण बनती है 

सब्जियाँ

सब्जिओं में ख़ासकर रतालु, बैंगन,अरबी,गोभी, ब्रोकली, तथा फली,आदि की सब्जि में हिस्टामाइन की मात्रा अधिक होती है जों एलर्जी का कारक है

इस तरह भोजन में कई तरह की सावधानियां, और नियमो का पालन करने से भोजन हमारे लिए अमृत का काम करता है अन्यथा भोजन  संबधित नियमो को नहीं मानने के कारण हम कई तरह के रोगों का शिकार हो सकते है

                      🙏 🙏नमस्कार 🙏🙏

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