प्राकृतिक सौन्दर्य साधन :और लाभ

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 नमस्कार पिछले पोस्ट में हमने केमिकल मिश्रित हानिकारक ब्यूटी प्रोडक्ट के बारे में पढ़ा जिनमे मौजूद हानिकारक रसायन तत्काल सुंदरता प्रदान तो करते है परन्तु इनका दूरगामी परिणाम काफी भयाभय होता है जो कई बीमारियों के साथ गंभीर चर्म रोग तथा कैंसर तक के सम्भावना पैदा कर सकते है। तो ऐसे में कुछ प्राकृतिक बस्तुओं से भी हम नेचुरल रूप से चेहरे तथा बालों, शरीर की त्वचा आदि का उचित और सम्पूर्ण देखभाल कर सकते है तो आइये आज जानते है हमारे आसपास मौजूद आसानी से पाए जाने वाले प्राकृतिक वस्तुएँ जों हमें बिना किसी साइड इफेक्ट और हानि पहुचायें हमें खूबसूरत बनाने में मदद करती है चेहरे पे कालापन दूर करने के उपाय? गर्मीयों में धुप की वजह से या फिर अत्यधिक बाहर काम करने के कारण अगर त्वचा में कलापन आ गया हो तो निम्नलिखित घरेलु उपायों के द्वारा अपने चेहरे पे निखार ला सकतें है। 1* शहद और नीबू का रस बराबर मात्रा लेकर चेहरे पर लगा ले और थोड़ी देर सूखने के बाद इसे धो ले इस प्रक्रिया को नियमित करने पर प्राकृतिक रूप से चेहरे का कालापन दूर होता है 2*मसूर दाल और दूध को पेस्ट बनाकर चेहरे पे लगाना और थोड़ी देर सूखने पर धो ले

वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति :होम्योपैथी

 क्या होम्योपैथी विश्वासनीय चिकित्सा पद्धति है?(kya homeo pathic vishashniya upchar paddhati hai?)


इस प्रश्न के उत्तरके लिए इस उपचार विधि के इतिहास में जाना होगा होम्योपैथी " समान इलाज" के सिद्धांत पर काम करता है जिसे समानता का नियम भी कहा जाता है

होम्योपैथी का इतिहास( homeopathy ka itihas)

होम्योपैथिक के संस्थापक जर्मन चिकित्सक समुअल हैनिमैंन (1755-1843)द्वारा 1796 में प्रस्तुत किया गया हैनिमेन ने इस सामान उपचार की विधि को होम्योपैथिक का नाम दिया ग्रीक भाषा के अनुसार होमियोस का अर्थ समान है तथा पाथोस का अर्थ है कष्ट हैनिमेन का मानना था की किसी बिशेष विष की शुक्ष्म सान्द्रता द्वारा उन्ही लक्षणों का इलाज किया जा सकता है जो उसकी बड़ी खुराक के कारण पैदा होते है हैनिमेन की उपचार विधि उनके समकालीन चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में कही अधीक सुरक्षित थी. यह प्र विधि तनुकरण पर आधारित  होने के कारण  कई बैज्ञानिक तथा डॉक्टरों द्वारा विशेष रूप से रसायन शास्त्रीयों द्वारा होम्योपैथिक उपचार विधि को सफल नहीं माना जाता है क्यों की तनुकरण की प्रक्रिया अकल्पनिय है यह काफी हद तक डाईल्यूट करने के बाद दवा में गुणों के मौजूद होने की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है

क्या होमियोपैथी कारगर चिकित्सा है?

चिकित्सा विज्ञानं  द्वारा होमियोपैथी के कई परिक्षण किये गए जिसमे किसी भी तरह का कोई स्पष्ट प्रणाम नहीं मिल पाया की होमीयोपैथी द्वारा सफल उपचार की कोई संभावना है हालांकि  आज भी होमियोपैथी चिकित्सा एक लोकप्रिय वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में कई रोगों के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है यू. के की पार्लिमेंट्री संस्था हाउस ऑफ़ कॉमन साइंस एंड टेक्नोलॉजी 2010 के एक रिपोर्ट अनुसार होमियोपैथी चिकित्सा किसी भी तरह से प्रभावी रूप से रोगों की स्थाई इलाज के लिए उपयोगी नहीं है। विज्ञानं डाईल्यूट के सिद्धांत द्वारा बने होमियोपैथी दवा में औषधिय गुणों की मात्रा होने की पुष्टि नहीं करता, परन्तु कई होम्योपैथ का मानना है की डाईल्यूट की प्रकिया में रसायन पतला  होने पर भी उसके गुणों की छाप उसमे छोड़ देती है जो रसायन को दवा के रूप में कारगर करती है। परन्तु आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं इसे सिर्फ एक प्लेसीबो की संज्ञा देता है।

भारत में होमीयोपैथी (bharat me homeopathy)

भारत में होमीयोपैथी 1810में  फ्रांसीसी यात्री डॉ. जोन मार्टिन होनिगबर्गर द्वारा  लाई गई थी उन्होने डॉ. हैनिमेन  से होमीयोपैथी सीखी थी यात्रा के दौरान  उन्होने यहाँ आकर रोगियों का इलाज किया सर्वप्रथम होम्योपैथिक का भारत के पश्चिम बंगाल में प्रकट्य हुआ 1881में भारत का पहला होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज कोलकाता में स्थापित हुआ इस मेडिकल कॉलेज की स्थापना ने भारत में होमीयोपैथी के विकाश में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह किया। महेंद्र लाल सरकार प्रथम भारतीय होमियोपैथी चिकित्सक थे अंततः 1973 में होम्योपैथि को राष्ट्रीय औषधिय प्रणाली के रूप में मान्यता दी गयी।
द स्टैटिसटिक्स ऑफ़ होम्योपैथि के एक रिपोर्ट  2020 -21अनुसार. भारत होम्योपैथिक चिकित्सा के उपयोग के मामले में विश्व में प्रथम स्थान में आता है भारत में 10करोड़ से अधिक लोग अपनी देखभाल  तथा चिकित्सा के लिए होमियोंपाथ का उपयोग करते है
                       धन्यवाद 

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